Sunday, May 13, 2018

मातृस्तोत्रम्

।।मातृस्तोत्रम्।।

   पितुरप्यधिका माता गर्भधारणपोषणात्।
    अतो हि त्रिषुलोकेषु नास्ति मातृसमो गुरुः।।
 
   नास्ति गंगासमं तीर्थं नास्ति विष्णुसमः प्रभुः।।
   नास्ति शम्भुसमःपूज्यो नास्ति मातृसमो गुरुः।।
 
   नास्तिचैकादशीतुल्यं व्रतं त्रैलोक्यविश्रुतम्।
    तपो नानशनात्तुलुयं नास्ति मातृसमो गुरुः।।

    नास्ति भार्यासमं मित्रं नास्ति पुत्रसमः प्रियः।।
     नास्ति भगिनीसमा मान्या नास्ति मातृसमो गुरुः।।

    न जामातृसमं पात्रं न दानं कन्यया समम्।
     न भ्रातृसदृशो बन्धुः न च मातृसमो गुरुः।।

     देशो गङ्गान्तिकः श्रेष्ठो दलेषु तुलसीदलम्।
     वर्णेषु ब्राह्मणः श्रेष्ठो गुरुर्माता गुरुषुवपि।।

     पुरुषः पुत्ररूपेण भार्यामाश्रित्य जायते।
      पूर्वभावाश्रया माता तेन सैव गुरुः परः।।

     मातरं पितरं चेभौ दृष्ट्वा पुत्रस्तु धर्मवित्।
      प्रणम्य मातरं पश्चात् प्रणमेत्पितरं गुरुम्।।

     माता धरित्री जननी दयाऽर्द्रहृदया शिवा।
       देवी त्रिभुवनश्रेष्ठा निर्दोषा सर्वदुःखहा।।

      आराधनीया परमा दया शान्तिः क्षमा धृतिः।
       स्वाहा स्वधा च गौरी च पद्मा च विजया जया।।

      दुःखहन्त्रीति नामानि मातुरेवैकशिंशतिम्।
      शृणुयाच्छ्रावयेन्मर्त्यः सर्वदुःखाद्विमुच्यते।।

      दुःखैर्महद्भिर्नोऽपि दृष्ट्वा मातरमीश्वरम्।
       यमानन्दं लभेन्मर्त्यः स किं वाचोपपद्यते।।

      इति ते कथितं विप्र मातृस्तोत्रं महागुणम्।
       पराशरमुखात्पूर्वमश्रौषं मातृसंस्तवम्।।

      सेवित्वा पितरौ कश्चित् व्याधः परमधर्मवित्।
      लेभे सर्वज्ञतां या तु साध्यते न तपस्विभिः।।

      तस्मात्सर्वप्रयत्नेन भक्तिः कार्या तु मातरि।
      पितरयपीति चोक्तं वै पित्रा शक्तिसुतेन मे।।

      ---इति व्यासप्रोक्तं मातृस्तोत्रं समाप्तम्।

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